Warning: Undefined array key "mode" in /home/azaannews/public_html/wp-content/plugins/sitespeaker-widget/sitespeaker.php on line 13
[ad_1]

-छठवे दिवस भागवत कथा में हुआ रुक्मणी संग श्री कृष्ण का विवाह
मुरैना, 06 जनवरी (हि.स.)। भगवान को स्वार्थ की भक्ति से खुश नहीं किया जा सकता है। वे प्रेम के भूखे होते हैं। मनुष्य अगर प्रेम के साथ भगवान को याद करें तो भगवान उसके पास हमेशा नजर आएंगे। भगवान सभी के हृदय में निवास करते हैं। जरूरत है उन्हें सिर्फ शुद्ध मन से पहचानने की।
यह बात शनिवार को राघव मैरिज हाउस कैलारस में चल रही भागवत कथा के छंठवे दिवस अयोध्या धाम के परमसंत एवं रामहर्षणदास महाराज के कृपा पात्र अयोध्या दास महाराज द्वारा अपनी अमृतमयी वाणी के द्वारा कंस वध एवं महारास कथा के साथ श्री कृष्ण रुक्मणी विवाह का प्रसंग सुनाते हुए कहीं। उन्होंने श्री कृष्ण के महारास लीला एवं कंस वध की कथा सुनाते हुए कहा कि भगवान विष्णु का पृथ्वी लोक में अवतरित होने के प्रमुख कारणों में से एक कारण कंस वध भी था। कंस के अत्याचार से पृथ्वी लोक में त्राहि-त्राहि होने लगी थी और सभी लोग भगवान को पुकारने लगे थे। तब श्री विष्णु भगवान, श्री कृष्ण के रूप में देवकी के गर्भ से अवतरित हुए थे।
उन्होंने कहा कि कंस को यह पता था कि उसका वध श्री कृष्ण के हाथ ही होना निश्चित है, इसलिए उसने बाल्यावस्था में ही श्रीकृष्ण को अनेक बार मरवाने का प्रयास किया। लेकिन वह हर प्रयास में असफल हो रहा था। उन्होंने अक्रूर एवं गोपी संवाद तथा अक्रूर को जमुना नदी में दिव्य दर्शन कराने का सुंदर चरित्र का वर्णन किया तथा मथुरा में जाकर विभिन्न प्रकार की लीलाओं का वर्णन भी किया।
आचार्य जी ने कहा कि भगवान कृष्ण ने 16000 कन्याओं से विवाह किया था, परंतु श्री कृष्ण जी का प्रथम विवाह रुक्मणी के साथ ही हुआ था। उनके साथ सुखमय जीवन बिताया था। इस अवसर पर श्रीकृष्ण रुक्मणी विवाह के वर्णन ने खूब सभी को आनंदित किया। उन्होंने कहा कि रुक्मणी का विवाह उसके पिता ने द्वारका नरेश श्रीकृष्ण से ही करने का विचार किया था, परंतु भाइयों के विरोध के कारण वह चुप रहे और भाइयों ने शिशुपाल से विवाह करने का निर्णय लिया । जब यह बात रुकमणी को मालूम पड़ी तो उन्होंने अपनी भाभी से इस पर विचार किया भाभी की सलाह पर रुक्मणी ने एक पंडित के हाथों अपना संदेश द्वारकाधीश के पास पहुंचाया और उस संदेश में सभी बातों का विवरण देते हुए कहा कि मैं चाहे 100 जन्म लूं, परंतु मेरा विवाह आप से ही होगा तथा समस्या का समाधान भी उस संदेश में उन्होंने लिखा था। इधर श्री कृष्ण भगवान ने भी पंडित जी को अपनी व्यथा सुनाई और तत्काल उनके साथ विवाह के लिए चल पड़े रुकमणी द्वारा पंडित जी की सफलता पर उन्हें वचन दिया वे ब्राह्मणों के पक्ष में हमेशा रहेंगी। इस प्रकार रुक्मणी विवाह का सुंदर वर्णन संत जी ने व्यास गद्दी से श्रोताओं को सुनाया।
हिन्दुस्थान समाचार/शरद/मुकेश
[ad_2]
Source link