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– विहिप के केंद्रीय मंत्री रहे पुरुषोत्तम नारायण सिंह से बातचीत
अयोध्या, 09 जनवरी (हि.स.)। विश्व हिन्दू परिषद के केंद्रीय मंत्री रहे पुरुषोत्तम नारायण सिंह श्रीराम जन्मभूमि मंदिर आंदोलन के दौरान संगठन के प्रमुख राणनीतिकारों में से एक रहे। राम मंदिर आंदोलन से जुड़े अनेक कार्यक्रमों के सफल संचालन में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही। अपने जीवन के 90 बसंत पार कर चुके पुरुषोत्तम नारायण को श्रीराम मंदिर का ताला खुलवाने की रणनीति बनाने वालों में से एक माना जाता है। उनका मानना है कि ‘आगे बढ़ो जोर से बोलो, रामजन्मभूमि का ताला खोलो’ नारे ने समाज में राम की अलख जगाई। आगामी 22 जनवरी को श्रीराम जन्मभूमि मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की तैयारियां जोरों पर हैं। इस बीच पुरुषोत्तम नारायण सिंह से हिन्दुस्थान समाचार के वरिष्ठ संवाददाता डॉ. आमोदकांत मिश्र ने मंदिर आंदोलन के संदर्भ में बातचीत की। प्रस्तुत हैं प्रमुख अंश-
सवाल: श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन की पृष्ठभूमि कैसे तैयार हुई?
जवाब: आठ अक्टूबर 1984 को पहली बार श्रीराम मंदिर का ताला खुलवाने के उद्देश्य से सरयू तट स्थित राम की पैड़ी पर ”संकल्प कार्यक्रम” हुआ। हम कह सकते हैं कि यहीं से श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति से जुड़े आंदोलनों की नींव पड़ने लगी। कालांतर में ताला खुला। कारसेवा हुई। फिर मंदिर निर्माण का आंदोलन भी। अब मंदिर निर्माण पूरा होते देख रहा हूं।
सवाल : संकल्प कार्यक्रम में बाधाएं तो आई होंगी?
जवाब: हाँ, लेकिन क्षणिक रहीं। हम संकल्पित भाव से कार्य कर रहे थे। यह श्रीराम मंदिर (तत्कालीन विवादित ढांचा) का ताला खुलवाने को लेकर होने वाला ”संकल्प कार्यक्रम” था और सभी ”संकल्पित भाव” से वहां पहुंचे थे। सरयू के किनारे इकट्ठा हुए रेत ही मंच बना और कार्यक्रम पूरा हुआ।
सवाल : रेत पर मंच तैयार करना तो बहुत चुनौतीपूर्ण रहा होगा?
जवाब: हां, सरयू नदी की रेत पर मंच बनाना मुश्किल था। फिर भी मंच बना। लगभग 100 लोगों के बैठने के लिए। न तो प्रशासन तैयार था और न ही (ठेकेदार) टेंट वाला। हमने ठेकेदार को तैयार किया। किसी भी अनहोनी की जिम्मेदारी हमारी बताई। फिर, जब जिला प्रशासन ने आपत्ति जताई तो टेंट वाले ने ही उन्हें ऐसा ही कहा। इस दौरान तत्कालीन एसएसपी कर्मवीर सिंह खुद भी तैयारी को देखने आये। वहां की सारी जिम्मेदारी मैंने खुद ओढ़ ली। मौन स्वीकृति मिल गयी। फिर, 08 फुट ऊंचा मंच बनाया गया। ”संकल्पित मन” से ”संकल्प कार्यक्रम” सफल हुआ। सरयू का जल सबने अपने हाथों में लिया और श्रीराम मंदिर का ताला खुलवाने का संकल्प पूरा हुआ।
सवाल: फिर, यहां कोई आंदोलन तो हुआ नहीं?
जवाब: हां, संकल्प कार्यक्रम के बाद अचानक जनजागरण का विचार आया। यह दैवीय प्रेरणा थी। बिना किसी पूर्व तैयारी के ही जनजागरण यात्रा निकली। बहुत जनसमर्थन मिला। शुरुआत सीतामढ़ी (जनकपुरी) से हुई। यह राम जानकी रथ बहुत ही आकर्षक था। अनायास ही लोग आकर्षित होते रहे। दैवीय प्रेरणा से ही यह रथ भी बढ़ चला। हजारों साधु-संतों और संन्यासियों का साथ मिला। लोगों का हुजूम आने लगा। फिर, इसकी सुरक्षा को लेकर चिंता हुई। यह भय सताने लगा कि रथ पर कहीं ईट पत्थर न चल जाएं। वजह, रथ को अनेक स्थानों पर मुस्लिम आबादी के बीच से गुजरना था।
सवाल: रथ यात्रा की सुरक्षा किसके जिम्मे थी ?
जवाब: रथ यात्रा की सुरक्षा के लिए हमने युवाओं की टीम तैयार की। ”राम जानकी रथ सुरक्षा समिति” बनी, लेकिन रक्षा करने वाले युवाओं के दल को अलग-अलग नामों से पुकारा जाता रहा। कोई ”राम दल” कहता था तो कोई ”बजरंग दल” और कोई इसे ”वीर वाहिनी” कहता रहा। बाद में इसे ”बजरंग दल” के नाम से गठित कर दिया गया। युवाओं को नियंत्रित कर रहे विनय कटियार को इसका दायित्व सौंप दिया गया। इन्हीं नौजवानों के घेरे में राम जानकी रथ चलता रहा। सभी यह जानने लगे कि ”बजरंग दल” के घेरे में साधु-संतों की टोली के साथ ”राम जानकी रथ” आ रहा है।
सवाल: राम जानकी रथ का पड़ाव कितने स्थानों पर रहा?
जवाब: देखिये यह यात्रा, बिना योजना के चल रही थी। मैंने बताया न, बिना किसी योजना के और बिल्कुल दैवीय प्रेरणा से। हां, एक बात जरूर बताना चाहूंगा कि 31 अक्टूबर को गाज़ियाबाद पहुंचते-पहुंचते इंदिरा गांधी की हत्या हो गयी और यात्रा रोक दी गयी। फिर, बाद के दिनों में योजना पूर्वक इसको देश के कोने-कोने में भेजा गया। क्षेत्रश: टोलियों के माध्यम से। चित्रकूट, अयोध्या, प्रयागराज समेत देश के हर क्षेत्र में जनजागरण चला। लोगों में इस बावत जागृति भी आई। इस यात्रा में एक ही नारा लगता था, ”आगे बढ़ो, जोर से बोलो, रामजन्मभूमि का ताला खोलो।”
सवाल: मंदिर निर्माण देखते हुए कैसा लग रहा। संकल्पित मन का संकल्पित भाव अब क्या महसूस कर रहा है?
जवाब: यह किसी एक के मन के संकल्पित भाव का फल नहीं है। साधु-संतों के आशीर्वाद और मार्गदर्शन ने किसी के भी मन में कभी नकारात्मक भाव नहीं आने दिया। सकारात्मक ऊर्जा मिलती रही। देवरहवा बाबा ने तो इसके निर्माण होने संबंधी भविष्यवाणी भी कर दी थी। उन्हें विश्वास था कि पहले अयोध्या, फिर काशी और अंत में मथुरा के मंदिर का पुनर्निर्माण का संकल्प पूरा होगा। यह सभी सहयोगियों और साधु-संतों का संकल्प फल है।
हिन्दुस्थान समाचार/आमोदकांत/पवन
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