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चमोली, 5 जनवरी (हि.स.)। विश्व विख्यात हिम क्रीड़ा केंद्र औली जो दिसंबर महीने से मार्च तक बर्फ से लबालब रहती थी, आज बर्फ का दीदार करने को तरस रही है। औली को तो अभी भी बर्फबारी का इंतजार है। इस बार तो भारत-तिब्बत सीमा की अग्रिम चौकियां जो बर्फ से लकदक रहती थी वहां भी इस वक्त रेगिस्तान जैसा नजारा है।
साढ़े दस हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित औली को तो हिमपात की प्रतीक्षा है। यहां 14 हजार से 18 हजार फीट की ऊंचाई तक भी बर्फ नजर नहीं आ रही है। समय पर बर्फबारी का न होना हिमालयी राज्य के लिए शुभ संकेत नहीं कहा जा सकता। बर्फबारी न होने के कारण शीतकालीन पर्यटन व्यवसाय तो प्रभावित हो ही रहा है, बागवानी कृषकों को भी अच्छी फसल की चिंता सताने लगी है। यदि अभी भी बर्फबारी नहीं हुई तो गर्मी के सीजन में पेयजल संकट भी गहराएगा।
दिसंबर-जनवरी महीने में पूर्व वर्षों में जहां श्री बद्रीनाथ-माणा सड़क हनुमानचट्टी से आगे बर्फ से पटी रहती थी। आज स्थिति यह है कि न केवल बद्रीनाथ-माणा बल्कि भारत-तिब्बत सीमा की अग्रिम चौकियां घस्तोली, रत्ताकोना व देवताल तक भी बर्फ नजर नहीं आ रही है।
विश्व विख्यात हिम क्रीड़ा केन्द्र औली व जोशीमठ के पर्यटन व्यवसायियों को अभी भी उम्मीद है कि बर्फबारी होगी और शीतकालीन पर्यटन के माध्यम से रोजगार की आस लगाए व्यवासायियों को राहत मिलेगी। इसके लिए व्यवसायी देवी देवताओं की शरण में भी जा रहे हैं। शनिवार 6 जनवरी को पर्यटन व्यवसायी व स्थानीय काश्तकार बर्फबारी के लिए जोशीमठ में भगवान विश्वकर्मा मंदिर में विशेष पूजा करेंगे।
औली में 25 दिसंबर व न्यू ईयर के मौके पर हजारों पर्यटक तो पहुंचे, लेकिन औली में बर्फ नहीं दिखने से वे मायूस होकर ही लौटे। बहरहाल पर्यटन व्यवासायियों व स्कीइंग प्रेमियों को अभी भी बर्फबारी की उम्मीद है।
वाडिया हिमालयन भू- विज्ञान संस्थान के निवर्तमान बरिष्ठ ग्लेशियर वैज्ञानिक डॉ. डीपी डोभाल कहते हैं कि सर्दियों में तापमान बढ़ने से बर्फबारी की प्रक्रिया भी शिफ्ट हो रही है। यह हिमालय के लिए ठीक नहीं है। उनका कहना है कि ग्लेशियर अभी तो टिके हैं लेकिन ग्लेशियर का घटना-बढ़ना भी बर्फ पर निर्भर है। यही स्थिति रही तो पेयजल का सबसे बड़ा संकट होगा।
हिन्दुस्थान समाचार/प्रकाश/वीरेन्द्र
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