Warning: Undefined array key "mode" in /home/azaannews/public_html/wp-content/plugins/sitespeaker-widget/sitespeaker.php on line 13
[ad_1]
छतरपुर, 6 जनवरी (हि.स.)। चेतगिर श्री हनुमान मंदिर में चल रहे भागवत कथा सप्ताह के तीसरे दिवस शनिवार को आचार्य भगवती प्रसाद जी कौशिक ज्ञान की व्याख्या करते हुए कहते हैं कि पृथ्वी पर मनुष्य ही एक मात्र ऐसा चेतन प्राणी है, जो विचार, चिन्तन, मनन, मंथन और अनुभव प्राप्त करने में समर्थ है। जिसके आधार पर वह नये तथ्यों व तत्वों से अवगत होता है और ज्ञान प्राप्त करता है। ज्ञान, ज्ञाता के ही इर्द-गिर्द घूमता है, ज्ञाता के अभाव में ज्ञान का अस्तित्व सम्भव नहीं है। जब मनुष्य किसी वस्तु अथवा विचार को अनुभूति बोध विश्वास, तर्क और अनुभव के आधार पर स्वीकार कर लेता है। तभी ज्ञान का सृजन होता है, इस क्रम के निरन्तर चलते रहने से ज्ञान की वृद्धि होती है।
कथा के अगले प्रसंग में आचार्य श्री कहते हैं कि जीव के मन में अच्छे-बुरे कई प्रकार के विचार प्रकट होते हैं। जिनकी पूर्ति के लिए वह कई प्रकार के उपाय करता है। अपने लाभ के लिए वह किसी की हानि की परवाह नहीं करता। मन की धुन पर सवार जीव यह भूल जाता है कि किसी वस्तु का मिलना न मिलना, कार्य का होना न होना तो ईश्वर की इच्छा पर निर्भर होता है। मन भगवान के चरित्र का वर्णन करते हुए श्री कौशिक जी ने कहा कि राजा बलि ने भगवान श्रीवामन देव का यक्षशाला में बहुत सत्कार किया तथा संकल्प के अनुसार तीन पग पृथ्वी दान की। वामन भगवान ने प्रसन्न होकर मनचाहा वरदान की रूप में अपने आपको भक्त की सेवा में सौंप दिया। समुद्र मन्थन प्रसंग को लेकर श्री कौशिक जी कहते है कि यह नाशवान शरीर समुद्र के सामान है और मन उस समुद्र का जल है। जब विवेक रूपी मंथनी से ज्ञान रूपी वासुकी नाग के द्वारा मन्थन किया जाता है तब रत्न रूपी भक्ति, ज्ञान, वैराग्य आदि चौदह रत्न प्रकट होते हैं। जिनसे मानव जीवन का कल्याण होता है। श्री कौशिक जी ने कहा कि प्रत्येक प्राणी को विवेक की आवश्यकता होती है। विवेक और बुद्धि के द्वारा ही प्राणी गृहस्थ जीवन सुखी और आनंदमय बना सकता है। ईश्वर आराधना से ही दुखों का मोक्ष संभव है।रविवार को श्रीराम महिमा व श्रीकृष्ण जन्मोत्सव की कथा होगी। साथ ही विभिन्न झांकियों के साथ धूमधाम से मुरलीवाले का जन्म उत्सव भी मनाया जाएगा।
हिन्दुस्थान समाचार/सौरभ भटनागर
[ad_2]
Source link